भारत में बोले जाने वाले 4 भाषा परिवार निम्न हैं:-
भाषा परिवार भारत में बोलने वालों का प्रतिशत
1) भारोपीय/भारत-यूरोपीय 73%
2) द्रविड़ 25%
3) ऑस्ट्रिक 1.3%
4) चीनी तिब्बती 0.7 %
'हिंदी' भारोपीय भाषा परिवार की शाखा भारतीय-ईरानी की शाखा भारतीय आर्यभाषा की एक भाषा है।
भारतीय-आर्य भाषाओं के काल को तीन कालखण्डों में विभक्त किया गया है:-
(1) प्राचीन भारतीय आर्यभाषा (1500 ई०पू० - 500 ई० पू०)
(2) मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषा (500 ई० पू० - 1000 ई०)
(3) आधुनिक भारतीय आर्यभाषा (1000 ई० से अब तक)
(1) प्राचीन भारतीय आर्यभाषा काल की भाषाएँ
(क) वैदिक संस्कृत या वैदिक (1500 ई०पू० - 1000 ई०पू०) :-
इसे 'वैदिक भाषा', 'वैदिकी', 'छान्दस्' व 'प्राचीन संस्कृत' भी कहा जाता है। इस भाषा में चारों वेद (संहिताएँ):- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्वेद ], ब्राह्मण ग्रंथ, उपनिषद आदि की रचना हुई, जिनमें भाषा का एक रूप नहीं मिलता। ऋग्वेद (संस्कृत का प्राचीनतम ग्रंथ) के 2 से 9 मंडलों की रचना अपेक्षाकृत अधिक प्राचीन है। प्रथम और दशम मंडलों की रचना बाद में हुई है।
(ख) संस्कृत या लौकिक संस्कृत ( 1000 ई० पू० - 500 ई० पू०) :-
इसे 'क्लैसिकल संस्कृत' व 'क्लासिकल संस्कृत' भी कहा जाता है। भाषा के अर्थ में 'संस्कृत' (संस्कार की गई, शिष्ट या अप्रकृत) शब्द का प्रथम प्रयोग वाल्मीकी रामायण में मिलता है। इस भाषा में 'रामायण' (वाल्मीकी) 'महाभारत' (वेदव्यास) तथा नाटक 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' (कालिदास) आदि महत्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना हुई।
इसी काल में संस्कृत भाषा के चर्चित वैयाकरण आचार्य पाणिनी ने व्याकरण की रचना की।
(2) मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषा काल की भाषाएँ
(क) प्रथम प्राकृत (पालि) (500 ई०पू० - 1 ई० ):-
इसे 'मागधी' या 'देशभाषा' (भारत की प्रथम देशभाषा) भी कहा गया है। यह बौद्ध धर्म की भाषा रही है। भगवान बुद्ध के सारे उपदेश पालि में ही हैं। इस भाषा में बुद्ध के उपदेशों का संग्रह त्रिपिटक (सुत्तपिटक, विनय पिटक, अभिधम्भ पिटक), बुद्धघोष की अट्ठकथा (अर्धकथा) और महावंश, विसुद्धिभग्ग, दीपवंस व धम्मपद मिलिन्दपञ्हो आदि ग्रन्थों का प्रणयन हुआ। पालि के प्रथम प्रसिद्ध वैयाकरण कच्चायन के अनुसार पालि में ४१ (41) ध्वनियाँ तथा दूसरे प्रसिद्ध वैयाकरण मोग्गलान के अनुसार ४३ (43) ध्वनियाँ हैं।
(ख) द्वितीय प्राकृत (प्राकृत) (1 ई० - 500 ई०) :-
इस भाषा के लगभग दो दर्जन भेदों का उल्लेख मिलता है, किन्तु भाषा-वैज्ञानिक स्तर पर केवल पाँच भेद ही स्वीकार किए गए हैं :-
(1) शौरसेनी प्राकृत:- यह मथुरा या शूरसेन जनपद में बोली जाती थी। इसे मध्यदेश की बोली भी कहा गया है।
(2) पैशाची प्राकृत :- यह उत्तर-पश्चिम में कश्मीर के आसपास की भाषा थी। इसके अन्य नाम पैशाचिकी, पैशाचिका, ग्राम्य भाषी, भूतभाषा, भूतवचन, भूत भाषित आदि भी मिलते हैं।
(3) महाराष्ट्री या माहाराष्ट्री प्राकृत :- इसका मूल स्थान महाराष्ट्र है।
(4) अर्द्धमागधी प्राकृत:- यह मागधी और शौरसेनी क्षेत्र अर्थात प्राचीन कोसल के आसपास की भाषा है।
(5) मागधी :- इसका मूल आधार मगध के आसपास का क्षेत्र है। लंका में 'पालि' को ही 'मागधी' कहते हैं।
अन्य भेद:- प्राच्या, शाकारी, चांडाली, शाबरी, आव - आवन्ती, टक्की या टक्कदेशी, कैकेय पैशाचिका, शौरसेन पैशाचिका, पांचाल पैशाचिका, चूलिका पैशाचिका आदि।
प्राकृत भाषा बोल-चाल की भाषा होने के कारण पण्डितों में प्रचलित नहीं थी। संस्कृत नाटकों के अधम पात्र इस बोली का प्रयोग करते थे। भगवान महावीर के सारे उपदेश यानि जैन साहित्य प्राकृत भाषा में लिखा गया है।
(ग) तृतीय प्राकृत (अपभ्रंश) (500 ई० - 1000 ई०):-
इसको 'अवहंस', 'अवहठ' 'अवहट्ठ', 'देशभाषा', 'देशी भाषा' 'ग्रामीण भाषा', 'आभीरोक्ति', 'आभीरी' आदि कई नामों से पुकारा जाता है। अपभ्रंश का शाब्दिक अर्थ है- बिगड़ा हुआ या गिया हुआ। अपभ्रंश शब्द का प्राचीनतम प्रामाणिक प्रयोग पंतजलि के महाभाष्य) में मिलता है। अपभ्रंश के प्रमुख रचनाकारों में स्वयंभू ('पउम चरिउ' अर्थात राम काव्य की रचना करके अपभ्रंश के वाल्मीकि कहलाए), धनपाल ('भविस्सयत कहा' - अपभ्रंश का पहला प्रबंध काव्य), पुष्पदंत (महापुराण, जसहर चरिऊ), सरहपा, कण्हणा आदि आते हैं।
उत्तर भारत में अपभ्रंश के सात क्षेत्रीय रूपान्तरण प्रचलित थे जिनसे आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं का विकास हुआ :-
अपभ्रंश का क्षेत्रीय रूप विकसित होने वाली आर्य भाषाएँ :-
(५) शौरसेनी अपभ्रंश पश्चिमी हिन्दी, राजस्थानी, गुजराती
(2) पैशाची अपभ्रंथ पंजाबी, लहंदा
(3) ब्राचड़ अपभ्रंश सिन्धी
(4) खस अपभ्रंश पहाड़ी
(5) महाराष्ट्री अपभ्रंश मराठी
(6) अर्द्धमागधी अपभ्रंश पूर्वी हिंदी
7) मागधी अपभ्रंश बिहारी, उड़िया, बंगला, असमिया
हिन्दी भाषा की उत्पत्ति मूलत: शौरसेनी अपभ्रंश से हुई है। हिन्दी का विकास क्रम निम्न रूप से समझा जा सकता है -
वैदिक संस्कृत> लौकिक संस्कृत > पालि > प्राकृत > अपभ्रंश> हिन्दी
इस प्रकार, हिन्दी भाषा का प्रयोग/ प्रारम्भ 1000 ई. से मानना तर्कसंगत है।
• आधुनिक भारतीय आर्यभाषा काल की भाषाएँ:-
(क) सिन्धी (ख) लहँदा (घा) पंजाबी (यह फारसी का शब्द है) (घ) गुजराती (ङ) मराठी (च) उड़िया (छ) बंगाली
(ज) असमी (झ) नेपाली (ञ) सिंहली (ट) जिप्सी (ठ) हिन्दी
'हिंदी' शब्द का प्रयोग आज मुख्य रूप से तीन अर्थों में हो रहा है:-
(क) विस्तृततम अर्थ:- इसके अंतर्गत हिंदी की 5 उपभाषाएँ व 18 बोलियाँ आती है।
(ख) भाषा शास्त्रीय अर्थ :- इसके अंतर्गत हिंदी की 2 उपभाषाएँ (पूर्वी हिंदी व पश्चिमी हिंदी) तथा इनके अंतर्गत आने वाली 8 बोलियाँ (हरियाणवी, खड़ीबोली, ब्रजभाषा, बदली, कन्नौजी, अवधी, बधेली, छत्तीसगढ़ी) शामिल हैं।
(ग) संकुचित अर्थ:- इसके अंतर्गत खड़ी बोली आती है जो कि हिंदी के मानक रूप में स्वीकृत है। यही सरकारी कामकाज आदि की भाषा है।
