समुच्चयबोधक
ऐसा पद (अव्यय) जो क्रिया या संज्ञा की विशेषता न बताकर एक वाक्य या पद का संबंध दूसरे वाक्य या पद से जोड़ता है, 'समुच्चयबोधक' कहलाता है।
जैसे—आँधी आई और पानी बरसा।
यहाँ 'और' अव्यय समुच्चयबोधक है; क्योंकि यह पद दो वाक्यों— 'आँधी आई', 'पानी बरसा’– को जोड़ता है।
समुच्चयबोधक अव्यय पूर्ववाक्य का संबंध उत्तरवाक्य से जोड़ता है। इसी तरह समुच्चयबोधक अव्यय दो पदों को भी जोड़ता है।
जैसे—दो और दो चार होते हैं।
समुच्चयबोधक के भेद निम्लिनखित हैं-
समानाधिकरण समुच्चयबोधक
१. जिन पदों या अव्ययों द्वारा मुख्य वाक्य जोड़े जाते हैं, उन्हें 'समानाधिकरण समुच्चयबोधक' कहते हैं। इसके चार उपभेद हैं-
(क) संयोजक—और, व, एवं, तथा
(ख) विभाजक -या, वा, अथवा, किंवा, कि, चाहे नहीं तो चाहे, न ... न, न कि,
(ग) विरोधदर्शक – पर, परंतु, किंतु, लेकिन, मगर, वरन, बल्कि
(घ) परिणामदर्शक- इसलिए, सो, अतः, अतएव
व्यधिकरण समुच्चयबोधक
२. जिन पदों या अव्ययों के मेल से एक मुख्य वाक्य में एक या अधिक आश्रित वाक्य जोड़े जाते हैं, उन्हें 'व्यधिकरण समुच्चयबोधक' कहते हैं। इसके चार उपभेद हैं-
(क) कारणवाचक- -क्योंकि, जोकि, इसलिए कि
(ख) उद्देश्यवाचक—कि, जो, ताकि, इसलिए कि
(ग) संकेतवाचक– जो-तो, यदि-तो, यद्यपि तथापि, चाहे परंतु, कि
(घ) स्वरूपवाचक-कि, जो, अर्थात, याने, मानो
