हिंदी की संवैधानिक स्थिति
राजभाषा एक संवैधानिक शब्द है जिसका अर्थ है - राजकाज की भाषा। राजाओं-नवाबों के जमाने में इसे दरबारी भाषा भी कहा जाता था।
स्वतंत्रता के पश्चात संविधान सभा के महत्वपूर्ण प्रश्न यह था कि भारत की राजभाषा किसे बनाया जाए । पर्याप्त विचार विमर्श के उपरान्त राजभाषा के नाम पर हुए मतदान में हिन्दुस्तानी' को 77 तथा हिन्दी को 78 वोट मिले। इसके बाद संविधान सभा ने 14 सितम्बर, 1949 ई० को हिंदी को भारत की राजभाषा घोषित किया।
इसीलिए प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को 'हिंदी दिवस' के रूप में मनाया जाता है।
संविधान सभा में हिंदी को राजभाषा बनाने का प्रस्ताव गोपाल स्वामी आयंगर ने रखा।
संविधान में भाषा-विषयक उपबंध अनुच्छेद 120, अनुच्छेद 210 (भाग-6) एवं भाषा-विषयक एक पृथक भाग भाग-17 (राजभाषा) के अनुच्छेद 343 से 351 तक एवं 8वीं अनुसूची में दिए गए हैं।
अनुच्छेद 120 : संसद में प्रयुक्त होने वाली भाषा
(1) संसद का कार्य हिंदी या अंग्रेजी में किया जाएगा। परन्तु यथास्थिति, लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा का सभापति किसी व्यक्ति को, जो हिन्दी या अंग्रेजी में पर्याप्त अभिव्यक्ति नहीं कर सकता, उसकी मातृभाषा में संसद को संबोधित करने की अनुमति दे सकता है।
(2) जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक इस संविधान के प्रारम्भ से 15 वर्ष की अवधि के पश्चात् 'या अंग्रेजी में' शब्दों का लोप किया जा सकेगा।
अनुच्छेद 210 : विधान मंडल में प्रयुक्त होने वाली भाषा
(1) राज्यों के विधानमण्डलों में कार्य अपने-अपने राज्य की राजभाषा या राजभाषाओं या हिन्दी में या अंग्रेजी में किया जाएगा। परन्तु यथास्थिति विधानसभा अध्यक्ष या विधान परिषद का सभापति किसी ऐसे सदस्य को जो उपर्युक्त भाषाओं में से किसी में अपनी पर्याप्त अभिव्यक्ति नहीं कर सकता, अपनी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की आज्ञा दे सकता है।
(2) जब तक राज्य का विधान मंडल विधिद्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक इस संविधान के प्रारंभ से 15 वर्ष की कालावधि की समाप्ति के पश्चात यह अनुच्छेद ऐसे प्रभावी होगा कि मानो 'या अंग्रेजी में' शब्दों का लोप किया जा सकेगा।
भाग-17 (राजभाषा)
अध्याय 1: संघ की भाषा (अनुच्छेद 343, 344)
अनुच्छेद 343 : संघ की भाषा
अनुच्छेद 343 (1) (खण्ड-1) :- संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी। अंकों का रूप भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा।
अनुच्छेद 343 (2) (खण्ड-2) :- इस संविधान के प्रारम्भ से 15 वर्ष की अवधि तक (अर्थात् 1965 तक) उन सभी शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा, जिनके लिए पहले प्रयोग किया जा रहा था। परन्तु राष्ट्रपति उक्त अवधि के दौरान संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी के अतिरिक्त हिन्दी भाषा और भारतीय अंकों के अंतर्राष्ट्रीय रूप के अतिरिक्त देवनागरी रूप का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा।
अनुच्छेद 343 (खण्ड-3) :- संसद उक्त 15 वर्ष की अवधि के पश्चात विधि द्वारा
(क) अंग्रेजी भाषा का ; या
(ख) अंकों के देवनागरी रूप का,
ऐसे प्रयोजनों के लिए प्रयोग उपबंधित कर सकेगी जो ऐसी विधि में विनिर्दिष्ट (उल्लिखित) किए जाएँ।
समीक्षा :- इस प्रकार संविधान में की गई व्यवस्था 343(1) हिंदी के लिए वरदान थी किन्तु 343(2) व 343(3) की व्यवस्थाओं ने इस वरदान को अभिशाप में
बदल दिया।
अनुच्छेद 344 :- राजभाषा आयोग और संसद समिति
राजभाषा के संबंध में आयोग (संविधान लागू होने के 5 वर्ष के उपरान्त राष्ट्रपति द्वारा) और संसद की समिति (10 वर्ष के उपरांत) से संबंधित है।
समीक्षा :- अनुच्छेद 344 के अधीन प्रथम राजभाषा आयोग [बालगंगाधर (बी.जी.) खेर आयोग] जून, 1955 (गठन) से जुलाई, 1956 (प्रतिवेदन) तथा संसदीय राजभाषा समिति [गोविंद बल्लभ (जी०बी०) पंत समिति] नवम्बर, 1957 (गठन) से फरवरी, 1959 (प्रतिवेदन) का गठन किया गया लेकिन इससे हिंदी को कोई सहायता नहीं मिली।
अध्याय 2: राज्य की राजभाषा/राजभाषाएँ (प्रादेशिक भाषाएँ)
अनुच्छेद 345 : प्रादेशिक भाषा/भाषाएँ
राज्य की राजभाषा या राजभाषाएँ (प्रादेशिक भाषा/भाषाएँ) या हिन्दी; ऐसी व्यवस्था होने तक अंग्रेजी
का प्रयोग जारी रहेगा।
अनुच्छेद 346 : राज्य-राज्य अथवा राज्य-संघ के बीच सेतु भाषा
एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच या किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की भाषा, संघ द्वारा तत्समय प्राधिकृत भाषा होगी परन्तु आपसी करार होने पर दो राज्यों के बीच संचार की भाषा हिंदी होगी।
अनुच्छेद 347 : राज्य भाषा के संबंध में विशेष अनुबंध
तद्विषयक मांग किए जाने पर यदि राष्ट्रपति द्वारा भाषा का समाधान हो जाए कि किसी राज्य के जनसमुदाय का पर्याप्त अनुपात चाहता है कि उसके द्वारा बोली जाने वाली कोई भाषा राज्य द्वारा अभिज्ञान की जाए, तो वह आदेश दे सकेगा कि ऐसी भाषा को उस राज्य में सर्वत्र अथवा उसके किसी भाग में राजभाषा की मान्यत दी जाए।
अध्याय 3: उच्चतम न्यायलय एवं उच्च न्यायलयों की भाषा
अनुच्छेद 348 :- उच्चतम व उच्च न्यायलयों की भाषा
खण्ड (1) :- जब तक और कोई व्यवस्था नहीं की जाए तब तक उच्चतम न्यायलय तथा प्रत्येक उच्च न्यायलय की सभी कारवाई अंग्रेजी भाषा में होगी।
खण्ड (2) :- केन्द्र और राज्यों के सभी अधिनियमों, विधेयकों, विधायी आदेशों आदि के प्राधिकृत पाठ अंग्रेजी भाषा में होंगे।
अनुच्छेद 349 :- भाषा संबंधी कुछ विधियों को अधिनियमित करने की प्रक्रिया
भाषा से संबंधित कुछ विधियाँ अधिनियमित करने के लिए विशेष प्रक्रिया (राजभाषा संबंधी कोई भी विधेयक राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी के बिना पेश नहीं किया जा सकता और राष्ट्रपति भी आयोग की सिफारिशों पर विचार करने के बाद ही मंजूरी दे सकेगा।
अध्याय 4 : विशेष निर्देश
अनुच्छेद 350 :- व्यथा निवारण प्रतिवेदन
व्यथा के निवारण के लिए अभ्यावेदन में प्रयोग की जाने वाली भाषा (किसी भी भाषा में)
(क) भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के लिए प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएँ
(ख) भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के लिए विशेष अधिकारी की नियुक्ति (राष्ट्रपति द्वारा)
अनुच्छेद 351: हिंदी के विकास के लिए निर्देश
संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार बढाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिन्दुस्तानी में और 8वीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदावली को आत्मसात करते हुए जहाँ आवश्यक या वांछनीय हो वहाँ उसके शब्द - भण्डार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी
समृद्धि सुनिश्चित करे।
8वीं अनुसूची
भाषाएँ:- 8वीं अनुसूची में संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त 22 प्रादेशिक भाषाओं का उल्लेख है। इस अनुसूची में आरंभ में 14 भाषाएँ [(1) असमिया, (2) बांग्ला, (3) गुजराती, (4) हिन्दी, (5) कन्नड़, (6) कश्मीरी, (7) मलयालम, (8) मराठी, (9) उड़िया, (10) पंजाबी, (11) संस्कृत, (12) तमिल, (13) तेलुगू, (14) उर्दू ] थी। बाद में सिंधी को (21वां संशोधन, 1967) तत्पश्चात कोंकणी, मणिपुरी, नेपाली को (71वां संशोधन, 1992) शामिल किया गया, जिससे इसकी संख्या 18 हो गई। तदुपरांत बोडो, डोगरी, मैथिली, संथाली को (92वां संशोधन, 2003) शामिल किया गया और इस प्रकार इस अनुसूची में 22 भाषाएँ हो गई।
* प्रथम राजभाषा आयोग (बी.जी. खेर आयोग) का विरोध अंग्रेजी समर्थक बंगाल के सुनीति कुमार चटर्जी तथा तमिलनाडु के पी० सुब्बोरोपान ने किया।
* संसदीय राजभाषा समिति (जी० बी० पंत समिति) का विरोध राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन और सेठ गोविंद दारा ने हिंदी की अवहेलना करने के कारण किया।
