विस्मयादिबोधक
जिन अव्ययों से हर्ष-शोक आदि के भाव सूचित हों, पर उनका संबंध वाक्य या उसके किसी विशेष पद से न हो, उन्हें 'विस्मयादिबोधक' कहते हैं।
जैसे :— हाय! अब मैं क्या करूँ?
हैं! तुम क्या कह रहे हो?
यहाँ 'हाय'! और 'हैं'! विस्मयादिबोधक अव्यय हैं, जिनका अपने वाक्य या किसी पद से कोई संबंध नहीं।
व्याकरण में विस्मयादिबोधक अव्ययों का कोई विशेष महत्त्व नहीं है। इनसे शब्दों या वाक्यों के निर्माण में कोई विशेष सहायता नहीं मिलती। इनका प्रयोग मनोभावों को तीव्र रूप में प्रकट करने के लिए होता है।
'अब मैं क्या करूँ?' इस वाक्य के पहले 'हाय!'
जोड़ा जा सकता है।
विस्मयादिबोधक के निम्नलिखित भेद हैं-
१. हर्षबोधक - अहा!, वाह-वाह!, धन्य-धन्य !, जय!, शाबाश!
२. शोकबोधक—आह!, ऊह!, हा-हा!, हाय!, त्राहि-त्राहि !
३. आश्चर्यबोधक–वाह!, हैं!, ऐ!, ओहो!, क्या!
४. अनुमोदनबोधक-ठीक! वाह! शाबाश! हाँ-हाँ! अच्छा!
५. तिरस्कारबोधक – छिह!, हट!, अरे!, दुर!, धिक!, चुप!
६. स्वीकारबोधक - हाँ!, जी हाँ!, अच्छा!, जी!, ठीक!, बहुत अच्छा!
७. संबोधनबोधक - अरे!, रे!, अजी!, लो!, जी!, हे!, अहो !
